Thursday, August 1, 2013

चिल्लर पार्टी का आरटीआई-आरटीआई खेल

कुछ दिन पहले मेरे स्कूल में पढ़ते बेटे ने बताया तो था कि उन के स्कूल में लखनऊ की ही प्रसिद्द लॉ यूनिवर्सिटी से कुछ छात्र आये थे और उन को आर टी आई के बारे में अच्छे से बताया था।


इसलिए आज की दैनिक हिन्दुस्तान अखबार में इस के बारे में खबर भी दिखी तो अच्छा लगा, अच्छा काम कर रहे हैं ये युवा लोग जिस तरह से स्कूल स्कूल में जा कर बच्चों को इस के बारे में बता रहे हैं, समझा रहे हैं और उन की झिझक दूर करने का उमदा काम अंजाम दे रहे हैं।

यहां तो ठीक है, लेकिन .........लेकिन मुद्दे पर आने से पहले चलिए आप पाठकों से एक प्रश्न ही हो जाए। आप मुझे यह बताईए कि क्या कोई बच्चा या यूं कह लें कि नाबालिग बच्चा आर टी आई कानून के अंतर्गत किसी जन सूचना अधिकारी को आवेदन कर सकता है, आप का क्या जवाब है?

..........जी नहीं, आप गलत सोच रहे हैं, आर टी आई कानून ने कोई आयु सीमा की बंदिशें नहीं लगाई हैं। कोई भी किसी भी उम्र में अपना आवेदन भेज सकता है। मुझे भी इस बात का पता न था, लेकिन जब मैंने नियमित उस बेहतरीन वेबसाइट पर जाना शुरू किया तो मुझे रोज़ाना नई नई बातें पता चलने लगीं। वही साइट जिस का मैं उल्लेख अपनी पिछली कुछ पोस्टों में कर चुका हूं... www.rtiindia.org

हां तो बात चिल्लर पार्टी की चल रही थी ... आज के अखबार  में जो खबर दिखी कि किस तरह के कुछ कार्यकर्ता इस मशाल को जलाए ऱख रहे हैं तो साथ ही एक छोटी सी खबर भी दिखी जैसा कि आप इस तस्वीर में भी देख सकते हैं जिस का शीर्षक ही यही था.... बच्चे तो निकले सब से आगे।

इस में यह लिखा गया था िक एक स्कूल के बच्चों ने १००० आर टी आई आवेदन लगा दिये ---इस बात को बड़ा ग्लोरीफाई सा किया गया दिखा कि बच्चों ने सरकार से पूछा कि पिछले इतने इतने वर्षों से जो पैसा भलाई के कामों के लिए आया, उसे किस तरह से खर्च किया गया।

मानता हूं, सवाल पूछने में बुराई नहीं है। लेकिन यह बात विचारणीय है कि क्या यह ज़रूरी था कि स्कूल के १००० बच्चे ऐसे प्रश्न पूछ डालें।

मुझे ध्यान आ रहा है बड़े शहरों में कुछ बढ़िया स्कूल बिल्कुल छोटे छोटे बच्चों को जब पोस्ट आफिस, पुलिस स्टेशन आदि के बारे में पढ़ाते हैं तो वे उन्हें वहां टीचर के साथ टूर पर भी एक दिन ले जाते हैं ... अच्छा आइडिया है ना, लेकिन यह मतलब तो नहीं कि पुिलस स्टेशन में जाने वाला हर बंदा एफआईआर भी लिखवाए।

ठीक उसी तरह अब स्कूली बच्चों ने अगर १००० आवेदन आर टी आई के लगा दिये तो विभिन्न दफ्तरों की तो सिरदर्दी बढ़ ही गई ...उन्होंने तो हर एक आवेदन का जवाब देना ही है, यह नहीं कि ये बच्चे हैं।

लेकिन एक बात और भी है कि अगर बच्चों ने जैन्यूनली कुछ पूछना है तो उन्हें कौन रोक सकता है, आर टी आई अधिनियम सब का अभिनंदन करता है। मेरा सुझाव है कि इस तरह की जो आरटीआई एवेयरनैस वर्कशाप होती हैं उन के दौरान बच्चों को मिल जुल कर आरटीआई आवेदन लिखवाने का अभ्यास करवाया जा सकता है और अगर दो-चार आवेदन बच्चों की ज़रूरत या एवेयरनैस के अनुसार विभिन्न जन सूचना अधिकारियों को बच्चों की तरफ़ से भिजवा भी दिए जाएं तो मुनासिब सा लगता है लेकिन अगर हज़ारों बच्चे इस तरह के आवेदन इन वर्कशापों के दौरान भिजवाने लगेंगे तो बड़ी मुसीबत हो जायेगी। 

चिल्लर पार्टी फिल्म का ध्यान आ गया था पोस्ट लिखते समय ..इसलिए वही शीर्षक उचित लगा ..बच्चों के लिए एक अच्छा संदेश ले कर आई एक बेहतरीन फिल्म....


आरटीआई ऑनलाईन और ऑनलाईन आरटीआई वेबसाइटें बिल्कुल अलग

यह बात मुझे भी इत्तेफाक से ही पता चली कि ये दोनों बिल्कुल अलग वेबसाइट्स हैं।
एक के बारे में आरटीआई आनलाइन के बारे में तो मैंने कल एक लेख भी लिखा था जिसे अगर आपने पढ़ा हो तो ... आर टी आई आवेदन ऑनलाइन भी होता है। 

कुछ दिन पहले की बात है कि मैंने एड्रेस बार में यूआरएल लिखना चाहा तो मेरे से जल्दी जल्दी में आरटीआई आनलाईन की जगह आनलाइन आरटीआई टाइप हो गया। और मैं पहुंच गया एक गैर-सरकारी साइट पर।

आप भी इस लिंक पर जा कर इस साइट का अवलोकन कर सकते हैं ..यह रहा इस का यू आर एल....www.onlinerti.com

हां इस साइट पर जा कर आप देखेंगे कि ये लोग आप की सारी सिरदर्दी मात्र ९९ रूपये में खरीद लेते हैं ---आपने केवल इन्हें यह बताना कि आप को किस दफ्तर से कौन सी सूचना चाहिए। आप इस साइट के विभिन्न लिंक्स पर जाकर इस के बारे में पूरी जानकारी हासिल कर सकते हैं। 

नहीं मैंने कभी इस साइट के माध्यम से सूचना प्राप्त नहीं की है, कारण कुछ नहीं, यह साइट तो अभी दिखी ...पता नहीं कब से शुरू है और मुझे तो सूचना के अधिकार कानून का इस्तेमाल करते पांच वर्ष होने को हैं।

अगर आप को लगता है कि आप को अपने प्रश्न लिखने में झिझक है ... डाक-वाक के झंझट में पड़ने का टाइम नहीं है तो इस तरह की साइटें काफ़ी मददगार साबित हो सकती हैं।

लेकिन अगर लगता है कि टाइप करवाना कोई झंझट है तो आप हाथ से साधारण कागज़ पर लिख कर भी अपना आवेदन जन सूचना अधिकारी को भेज सकते हैं। कोई इश्यू नहीं है यह....और हां, मैंने कल जिस साइट का लिंक अपनी पोस्ट में बताया था  www.rtiindia.org  वहां से भी मुफ्त मदद ली जा सकती है। उन्होंने फार्म आदि तैयार किए हुए हैं जिन्हें आप डाउनलोड कर सकते हैं ...उन्हें कापी कर सकते हैं, वे लोग भी समाज सेवा ही कर रहे हैं...और बड़े ही हेल्पफुल नेचर के बंदे हैं ....लेकिन हां सब के सब धुरंधर, मंजे हुए लोग आरटीआई के मामले में ....आप एक बार इस साइट को ट्राई तो कर के देखें, वे तो आप की सहायता करने को तैयार बैठे हैं।

और एक बहुत बड़ी खुशखबरी ...यह जो सरकारी साइट है आरटीआई आनलाईन इस पर अभी तक कुल ३७ मंत्रालयों एवं सरकारी विभागों के बारे में सूचना पाई जा सकती है लेकिन मुझे आज ही सूचना मिली है कि इस महीने के मध्य तक सभी मंत्रालयों एवं विभागों से संबंधित सूचना इस साइट के माध्यम से आप आनलाइन पा सकते हैं।

Wednesday, July 31, 2013

आर टी आई में किसी उस्ताद की ज़रूरत हो तो क्या करें ...

होता है, बहुत बार ऐसा होता है और आप के साथ भी होगा कि किसी सूचना की इंतज़ार आप कितनी डेसपिरेटली कर रहे हैं लेकिन जन सूचना अधिकारी का बेतुका का जवाब आप की उम्मीदों पर पानी फेर देता है।

ऐसे में क्या करें, किस से डिस्कस करें, मैं अपने व्यक्तिगत अनुभव के आधार पर कह सकता हूं कि हमारे प्रश्न हो सकता है कि कुछ इस तरह के हों कि हम अपने कार्य-स्थल पर उन की चर्चा ही न करना चाहते हों, मेरे साथ तो बहुत बार ऐसा होता है।

और मैंने आरटीआई के पांच वर्ष तक धक्के खाने के बाद यही सीखा है कि कोई आरटीआई विषय को डील कर रहा है इस का यह मतलब नहीं कि उस का ज्ञान भी श्रेष्ठ ही होगा। मुझे कभी भी यह नहीं लगा, कारण यही है कि हम लोग विषय का अध्ययन करने से कतराते रहते हैं, हम यही सोचते हैं कि बाबू है ना, लिख देगा कुछ भी जवाब, नहीं....अगर हम में ही कुछ नया जानने की इच्छा-शक्ति नहीं है, बाबू बेचारे से क्यों इतनी अपेक्षा कर लेते हैं लोग, मुझे कभी समझ में नहीं आया।

हां तो बात चल रही थी कि आर टी आई में कहीं अटक जाने पर बाहर निकलने के उपायों की ... मैंने काफ़ी वकीलों से भी बात की , वे अपने काम में धुरंधर हो सकते हैं, लेकिन आरटीआई के मामले में वे कुछ ज़्यादा मदद कर नहीं पाते। क्या है ना, किसी से बात करने पर एक-दो मिनट में ही आप को पता चल जाता है कि यह मेरी समस्या का समाधान बता पायेगा कि नहीं...

हां तो फिर क्या करें.................इस के लिए मैंने एक तरीके का आविष्कार किया कि जब भी मुझे किसी विषय पर बहुत ज़रूरी सूचना चाहिए होती थी लेकिन जन सूचना अधिकारी द्वारा दो टूक जवाब मिल जाता तो मैं एक साइट ढूंढ ली जिस का यू आर एल यह है ...........   http://www.rtiindia.org  

इस साइट की तारीफ़ करने के लिए मेरे पास शब्द ही नहीं हैं, जिस तरह का मार्गदर्शन वे कर देते हैं ऐसा तो कोई मोटी फीस लेकर भी न कर पाए.......मैं अपना प्रश्न वहां पर जा कर करता और मेरे पास कुछ ही घंटों में जवाब मिल जाते ... मैं उन का अध्ययन करने पर प्रथम अपील या सैकेंड अपील करता और लगभग हमेशा ही मुझे मेरी मांगी गई सूचना पाने में सफलता ही मिली ।

हां, एक बात और पाठकों से शेयर करना चाहूंगा कि प्रथम अपील में केवल इतना ही कह न चुप हो जाएं --एक सुझाव है---कि जन सूचना अधिकारी ने सूचना नहीं भेजी, उस में कुछ और भी डालें, क्या? -- मैं सीआईसी (मुख्य सूचना आयोग) की साइट पर जा कर थोड़ा सा होमवर्क कर लिया करता ... उस का भी एक आसान सा तरीका है, आप जिस विषय के बारे में सूचना पाना चाहते हैं, आप सीआईसी साइट पर सर्च-बाक्स में उन की-वर्ड्स को डाल दें, तुरंत आप के पास वे तमाम रिज़ल्ट्स आ जाते हैं जिस पर केंद्र सूचना आयोग ने आरटीआई आवेदन करने वालों के हक में निर्णय लिये होते हैं। बस थोड़ी सी और मेहनत कि आप को उन में से दो चार निर्णयों का अध्ययन करना होगा, उन का केस नंबर नोट करें और पहली अपील करते वक्त इन केसों के नंबर डाल दें ...मैं तो कईं बार उन के कुछ अंश भी डाल देता था कि जब केंद्र सूचना आयोग ने इस तरह के केसों में सूचना देने की सिफारिश की है तो यह जन सूचना अधिकारी क्यों इस की राह में रोड़े अटका रहा है, बस इतना ही लिखना काफ़ी होता था, कुछ ही दिनों या हफ्तों में सारी सूचना पहुंच जाती थी।

मेरे विचार में जो ट्रेड-सीक्रेट्स मैं शेयर कर रहा हूं उन्हें धीरे धीरे शेयर करना चाहिए, इसलिए आज इतना ही .....हां तो बात आरटीआई गुरू की हो रही थी, कोई गुरू वुरू नहीं है इस मामले में किसी है, हम लोग आपस में एक दूसरे के अनुभवों से ही सीखते हैं, नेट है ना, बस वहां से हेल्प ले ली। और एक बात सूचना के अधिकार अधिनियम का एक बार अच्छे से अध्ययन ज़रूर कर लेना चाहिए, नेट पर तो जगह जगह पडा़ ही है, बाज़ार में भी आसानी से मिल जाता है।

मैं भी आरटीआई आदि की तरफ़ नहीं जाता है लेकिन दो एक इंसान ऐसे मिल गये जिन की वजह से ज़िंदगी के बेहतरीन चार वर्ष खराब हो गए, क्या करें, ज़िंदगी का सफ़र है, हर तरह के इंसान हैं और मिलेंगे भी ....लेकिन मैं बहुत बेबाकी से यह स्वीकार करता हूं कि मुझे जितनी मदद आरटीआई कानून से मिली इतनी तो शायद कोई परम मित्र भी न कर पाता, परेशान तो मैं हुआ, इस चक्कर में बहुत सी व्यक्तिगत प्रायरटीज़ को तो नज़र अंदाज़ किया ही, लेकिन कईं बार जब पानी आप के नाक तक पहुंच जाए तो केवल सूचना रूपी लाइफ-गार्ड ही आप की रक्षा कर सकता है और मेरे साथ भी यही हुआ। इसलिए करने वाले ने तो मेरा बुरा करना चाहा लेकिन देखिए मैं पिछले चार वर्षों में इतना कुछ सीख गया कि आरटीआई पर किताब लिखने के लिए बिल्कुल तैयार हो गया.....................हां, फिर से ज़िंदगी के सफर की बात याद आ गई ......dedicated to those cherished moments of life which i missed out just searching for vital information -- i got the information but those golden four years of life can't be brought back. Thanks to all those SADISTIC SOULS !


Tuesday, July 30, 2013

आर टी आई का ऑनलाईन आवेदन भी होता है


मैं लगभग पिछले पांच वर्षों से आर टी आई का इस्तेमाल कर रहा हूं ... लेिकन एक बार बड़ी अजीब सी लगती थी कि वैसे तो सरकार ने इसे अपनी तरफ़ से अच्छा खासा सिंपल बनाया है लेकिन पहले आवेदन लिखो, फिर पोस्टल-आर्डर के लिए डाकखाने के कुछ चक्कर काटो, ऐसा नहीं होता कि आप को हर बार दस रूपये का पोस्टल आर्डर तुरंत मिल जाए---काफी बार तो वह खत्म हुआ ही बताते हैं। चलिए, उस के बाद फिर से स्पीड-पोस्ट या रजिस्ट्री करवाओ....फिर सूचना देने वाला कार्यालय लिखेगा कि इतने रूपये और भेजो अगर आप को सूचना के रूप में इतनी फोटोकापियां चाहिए। फिर से वही सारी प्रक्रिया शुरू। इसलिए मुझे यह सब बहुत पकाने वाला काम लगता था। बहरहाल, वह मेरी व्यक्तिगत राय है ..लेकिन जिसे जिस समय जो सूचना चाहिए होती है उस के लिए इस तरह की छोटी मोटी परेशानी कोई बात नहीं होती।

मुझे हमेशा ऐसा लगता था कि हर काम तो आज ऑन-लाइन हो रहा है, ऐसे में सूचना के अधिकार के अंतर्गत भी सूचना पाने की सुविधा भी तो लोगों को ऑन-लाइन किस्म की मिलनी चाहिए।

बहरहाल मैं यह सोचता ही रहा कितने लंबे समय तक....लेकिन केवल सोचने ही से थोड़ा न सब कुछ मिल जाता है।


कुछ हफ्ते पहले की ही बात है कि द हिंदु में एक बिल्कुल छोटी सी खबर दिखी कि अब सूचना के अधिकार अधिनियम के अधीन आवेदन आॉन-लाइन भी किये जा सकते हैं। कुछ ज़्यादा डिटेल दिये नहीं दिये थे, उस खबर में ....इसलिए थोड़ी मेहनत करनी पड़ी और मैं पहुंच गया इस की साइट पर जिस का लिंक नीचे दे रहा हूं .....   www.rtionline.gov.in  

आप भी इस साइट का टूर कीजिए -- मैंने भी इस के माध्यम से एक आरटीआवेदन किया था ऑनलाइन --फीस भी दस रूपये क्रेडिट-कार्ड से ही जमा हो गई थी, तुरंत आप के आवेदन का पंजीकरण कर लेते हैं और आप की ई-मेल में पंजीकरण संबधी सूचना भी आ जाती है.

कुछ ही दिनों में मुझे सूचना भी मेरी ई-मेल के माध्यम से ही प्राप्त भी हो गई थी।

अच्छा लगा यह सिस्टम... कोई झंझट नहीं डाकखाना, लिफ़ाफे, रजिस्टरियां, स्पीड-पोस्ट, पोस्टल आर्डर ---बिल्कुल आज के ज़माने जैसी क्विक फिक्स प्रणाली।

इस में अभी थोड़ी सी दिक्कत बस यही है कि अभी केंद्रीय सरकार के सभी मंत्रालय इस प्रणाली में शामिल नहीं किए जा सके हैं, काम चल रहा है, क्योंकि इस के लिए पहले तो उस मंत्रालय के कुछ लोगों को इस सिस्टम के बारे में ट्रेन किया जाता है। वैसे इन का लक्ष्य है कि इन्होंने सभी मंत्रालयों एवं सरकारी विभागों को इस ऑनलाइन प्रणाली से ही कवर करना है। बहुत अच्छा सिस्टम लगा मुझे तो ... वैसे तो अभी भी आप देखेंगे कि काफ़ी मंत्रालय हैं जो इस सिस्टम से जुड़ चुके हैं। हां, आवेदन फीस वही दस रूपये ही है, आगे कोई फोटोकापी आदि के चार्जेज चाहिए होंगे तो वे स्वयं आप से संपर्क करेंगे।

दरअसल मैं अभी श्योर नहीं हूं कि जो जवाब उन्होंने मेरे को ई-मेल से भेजा है क्या वे उसे डाक से भी भेजेंगे ....ठीक है मुझे तो वह जवाब डाक से नहीं चाहिए था, मेरा काम ई-मेल से चल गया था, लेकिन यह बात का ध्यान रखना ज़रूरी है.

अब आधुनिक तकनीक कोई भी हो हम कितनी भी बातें कर लें, इस तरह की बातों का असल फायदा तो साधन संपन्न लोग उठा पाते हैं --देखिए न इंटरनेट भी चाहिए, क्रेडिट कार्ड भी चाहिए ---शायद नेट बैंकिंग या डेबिट कार्ड से भी आप दस रूपये के आवेदन का भुगतान कर सकते हैं, अभी मुझे ठीक से याद नहीं, लेकिन आप मेरे द्वारा ऊपर दिये गये लिंक पर जाएंगे तो सब ठीक से समझ जाएंगे।

कैसी लगी आप को यह जानकारी, लिखियेगा। बहुत दिनों से इसे पाठकों से शेयर करना चाह रहा था लेकिन मेरे इस सूचना के अधिकार ब्लॉग का पासवर्ड ही मुझे नहीं मिल रहा था। आज मिल गया और मैं बैठ गया अपना ज्ञान झाड़ने।
पता नहीं क्या कारण है -- मुझे लगता है कि इस ऑनलाइन आरटीआई सिस्टम की ज़्यादा पब्लिसिटी नहीं की गई है, कारण कुछ कुछ तो मैं अनुमान लगा सकता हूं , बाकी क्या कहें, चलिए इस तरह की प्रणाली शुरू हो गई यही अपने आप में एक उपलब्धि है।

न तो मैंने बस उस दिन द हिंदु के अलावा इस के बारे में कोई खबर ही देखी, न ही टीवी ...पता नहीं पिछले दो-तीन महीनों से न तो अखबार ही ढंग से पढ़ पाता हूं और न ही टीवी मन को ज़्यादा भाता है ......अब भाई बलम पिकचारी और रांझना के वही दो-तीन गीत कितनी बार सुनें ......लेकिन एफएम मैं जब भी मौका मिलता है सुन लेता हूं ....वहां भी तो इस आनलाइन आरटीआई के बारे में कुछ नहीं सुना।

चलिए भविष्य के लिए ही सही लेकिन ऊपर दिये गये लिंक को नोट कर लीजिए।

मैं एक कप चाय का लिंक लगाने लगा तो मुझे हिंदी वाला कोई लिंक नहीं मिला --इस फिल्म के बारे में मैंने इसी ब्लाग पर एक पोस्ट भी लिखी थी...कहते हैं ना जब कोई दिल से बोलता है तो बात दूसरे तक पहुंच ही जाती है ..इसलिए आप इस वीडियो को देखिए --काम की बात आप तक पहुंच ही जाएगी। और कहीं से इस फिल्म देखने का जुगाड़ हो जाए तो बात ही क्या है, मैंने इसे दूरदर्शन पर देखा था .........




Monday, February 4, 2013

और आर टी आई यूज़र कैसे बन गया एक्टिविस्ट

अमृतसर जाने का मौका मिला -- स्कूल का दोस्त रमेश -- लंबे समय तक हम लोग गप्पबाजी करते रहे। उसे सूचना के अधिकार कानून के बारे में काफी जानकारी है .. अकसर वह मेरे  साथ अपने अनुभव शेयर करता रहता है।
एक बहुत ही अजीब सी बात उस से पता चली कि उस के बहुत से काम रूकने लगे हैं...अपने विभाग में भी उस के काम नहीं हो रहे -- कारण वही चूतिया सा एक संकीर्णता मानसिकता को दर्शाता हुआ कारण कि वह बहुत आरटीआई लगाता है।
और बताने लगा कि उसी के विभाग के बॉस ही उस के बारे में यह बात फैलाने लगे हैं -- कह रहा था कि सारे एक जैसे नहीं है लेकिन हर विभाग में एक दो तो होते हैं जो ......गुलामी (समझ गये कि नहीं) में एक दम फिट होते हैं ..बताने लगा कि वही लोग उस के बारे में कुछ लोगों को हर वक्त कहते रहते हैं कि यह आर टी आई करता है।
जब उस ने अचानक यह कहा कि क्या आरटीआई लगाना किसी को गाली देना है  तो मुझे एक बार तो उस की बात सुन कर झटका सा लगा कि यह ऐसा क्यों कह रहा है। लेकिन वह भी अपनी धुन का पक्का है ...बताने लगा कि ये लोग तरह तरह की च..चालाकी( अभी भी नहीं समझे, धत्त तेरे की..) करके उस के इरादों से उसे डगमगा नहीं सकते।
मैं भी टकटकी लगा कर उस  की बातें सुन रहा था ...बड़ा अजीब सा लग रहा था कि अगर कोई आरटीआई पूछ रहा है तो यह भी उस का एक अधिकार है जो वह इस्तेमाल कर रहा है, इस से जो डर रहा है वह क्यों डर रहा है, वह कईं किस्से बताने लगा।
उस ने मुझे कईं किस्से सुनाए जहां पर उस के बहुत से काम बनते बनते बिगड़ गए, केवल इसलिए कि उस से पहले उस की आरटीआई के चर्चे उस काम करने वाले बंदे तक पहुंचा दिए गये ---और वह उस चश्मे वाले बंदे का नाम भी मुझे बताने लगा .. दोस्त मिले थे बहुत दिनों बाद और बाद में उस ने उस के बारे में क्या क्या बताया, वह मैं यहां नहीं लिख सकता।
अच्छा एक और बात, रमेश ने जितने भी आरटीआई आवेदन लगाए अपने लिए ही लगाए .... अपनी सर्विस के बारे में कुछ पूछना क्या कोई ज़ुर्म करने जैसा है, नहीं ना तो फिर वह यही प्रश्न मेरे से पूछने लगा कि फिर आरटीआई के नाम से ही कुछ लोगों की ....ने क्यों लगती है, इस का सीधा मतलब है कि यह अपने आप में एक सक्षम हथियार है।
बहरहाल, हमारी डिस्कशन तो लंबी चलती है जिस में मैंने भी अपने आरटीआई अनुभव सांझे किये ... कुछ सुना बहुत कुछ सुनाया ...लेकिन अंत में एक बात अच्छे से समझ में आ गई ---जिन कार्यकर्ताओं के अथक प्रयासों के कारण ऐसा बढ़िया कानून बन गया उन को कोटि कोटि नमन....
पूरन के ढाबे पर खाने का लुत्फ़ उठाते उठाते उस ने मुझे एक बात ज़रूर कह दी .... कहने लगा कि यार आज की तारीख नोट कर लेना .. मैं पूछा क्या मतलब .... बताने लगा कि पहले तो वह था आरटीआई यूज़र लेकिन आज से एक आरटीआई एक्टिविस्ट तैयार हो गया.........शायद मैं उस की बात समझ नहीं पाता .. उस ने खुलासा किया कि वह अब दूसरों के लिए अर्थात् समाज की भलाई के लिए इस कानून का उपयोग करेगा।
मैं उस की बातें सुना जा रहा था ..सुने जा रहा था ...... और बहुत कुछ अपने आप से भी पूछ रहा था ....बाकी फिर ...
संगति का असर देखिए -- मैंने भी वापिस आते ही अपने इस आरटीआई  ब्लॉग को खोला और इसे संवारने में लग गया हूं ...कोशिश करूंगा कि इस पर निरंतर लिखूं ... और पूरी इमानदारी से लिखूं ..अभी समझ नहीं पा रहा हूं कि इसे हिंदी में ही रहने दूं या फिर इंगलिश में आरटीआई पर लिखना शुरू करूं ...........लेकिन मैं उस दोस्त की बातों से इतना प्रभावित हुआ हूं कि मुझे भी लगता है कि मैं भी आर टी आई यूज़र से पदोन्नत हो कर ..................     कुछ नहीं यार, कुछ नहीं ... यह गीत सुनिए  जिस का ध्यान आ गया .... समझने वाले तो समझ ही जाएंगे ...............